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Durga Puja in Kolkata : Historical Origins

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कोलकाता भारत के सबसे रंगीन और जीवंत शहरों में से एक है। यहाँ का Durga Puja in Kolkata सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि कल्चर, आर्ट, सोशल यूनिटी, पारंपरिक रीति-रिवाज और आधुनिकता का अद्भुत मेल है। इस आर्टिकल में हम देखेंगे कि कैसे कोलकाता में दुर्गा पूजा मनायी जाती है — इतिहास से लेकर पंडालों की सजावट, भोज, लोकाचार, प्रभाव, बदलाव, पर्यावरण, और त्योहार की भावना तक।

शुरुआत और इतिहास

  • दुर्गा पूजा पहली बार 1610 ई में कोलकाता में  बारिश के राय चौधरी परिवार में आयोजित की गई थी , तो तभी से ये परंपरा चलती हुई आ रही  है और वेस्ट बंगाल में धूमधाम से दुर्गा पूजा मनाई  जाति है।
  • सन् 1757 में महाराजा नबकृष्ण देव ने शौभाबाज़ार राजबाड़ी में दुर्गा पूजा की शुरुआत की, जो आगे चलकर कोलकाता की सबसे प्रतिष्ठित और प्रभावशाली बोनदीबाड़ी पूजाओं में गिनी जाने लगी।
  • कहा जाता है कि बारोवारी पूजा की अवधारणा 18वीं या 19वीं शताब्दी की शुरुआत में उत्पन्न हुई थी. इसके पीछे का कारण यह है कि कुछ परिवारों ने शुरू में निजी दुर्गा पूजा आयोजित करने के बजाय सभी को भाग लेने के लिए एक सार्वजनिक पूजा शुरू करने का निर्णय लिया, जिससे एक “सार्वजनिक इकाई” की स्थापना हुई.

  मान्यता

  • Durga Puja in Kolkata को December 2021 में UNESCO की Intangible Cultural Heritage of Humanity की लिस्ट में शामिल किया
  • इस मान्यता ने इस त्योहार को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई और यह दिखाया कि पूजा सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि कला, सामुदायिक भावना और सांस्कृतिक विरासत है।

पूजा की अवधि और मुख्य दिन

  • पूजा की शुरुआत महालया के दिन होती है — इस दिन देवी दुर्गा की प्रतिमा को ‘आँखें’ लगायी जाती हैं।
  • पूजा मुख्य रूप से पाँच दिनों की होती है: Sasthi, Saptami, Ashtami, Navami, Vijayadashami (Dashami)
  • अंतिम दिन अर्थात विजयदशमी पर दुर्गा प्रतिमाओं का immersion होता है यानी मूर्तियों को नदी/जलाशय में विसर्जित किया जाता है।

पूजा का धार्मिक महत्व और मिथक

 

  • पूजा धार्मिक अनुष्ठानों, मंत्रोच्चारण, हवन, धूप-दीप, गीत व संगीत आदि के द्वारा सम्पन्न होती है।

पंडाल और कलात्मक सजावट

  • कोलकाता की दमकती हुई सड़कें, जगमगाती लाइट्स और थिम (theme) पर आधारित पंडालें, इस त्योहार की जान होते हैं।
  • पंडाल बनाने वाले कलाकार) कुमारटूली ) जैसे इलाकों में वर्षो से काम करते हैं, जहां मिट्टी तथा अन्य प्राकृतिक सामग्री से प्रतिमाएँ तैयार होती हैं।
  • हाल के वर्षों में पंडालों में थिम आधारित डिज़ाइन का चलन बढ़ा है — पारंपरिक मिथकीय चित्रों से हटकर सामाजिक, राजनीतिक एवं पर्यावरणीय विषयों पर भी पंडाल बनाए जाते हैं।

सामुदायिक/लोक पूजा

  • कोलकाता में “सार्वजनिक पूजा” यानी Sarbojanin Puja बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। यह पूजा हर किसी के लिए खुली होती है, किसी भी जाति, धर्म या आर्थिक स्थिति से हो सकता है।
  • बोरोवारी पूजा इसी का हिस्सा है जहाँ एक पचास-से सौ-से ज़्यादा लोग मिलकर पूजा का आयोजन करते हैं।

   भोजन एवं खाने-पीने की विविधता

पूजा के दिनों में भोग तैयार किया जाता है, जिसमें खिच़ुरी, दाल-भात, शाक-सब्ज़ियाँ, मिठाईयां, फल आदि शामिल हैं। भक्तों में प्रसाद के रूप में बाँटा जाता है।

  • मिठाइयाँ जैसे रसगुल्ला, खताइ, गुलाब जामुन आदि विशेष रूप से बनाई जाती हैं। गली-मोहल्ले के हलवाई इस समय बहुत व्यस्त रहते हैं।
  • बाहर से खाने-पीने के स्टॉल, बहुत ज़्यादा चलता है — आदि भी लोकप्रिय हैं।

सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

दुर्गा पूजा Kolkata की अर्थव्यवस्था को बड़े पैमाने पर प्रभावित करती है — पंडाल निर्माण, मूर्ति बनाने वाले कलाकार, प्रकाश एवं सजावट, कपड़े-फैशन, होटल-रूम, पर्यटन आदि।

  • इसके अलावा स्थानीय दुकानदारों, मिठाई-वाले, कपड़े-बाज़ारों को अच्छी आमदनी होती है। लोग नए कपड़े पहनते हैं, घर सजाते हैं — इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बूस्ट मिलता है।
  • पर्यटन की दृष्टि से भी यह त्योहार महत्वपूर्ण है। देश-विदेश से लोग कोलकाता आते हैं पंडाल-हॉपिंग (pandal hopping) करने।

बदलते ट्रेंड्स और आधुनिक प्रभाव

  • पिछले कुछ वर्षों में थीम-पुजाएँ और अभिनव पंडाल डिजाइन काफी लोकप्रिय हुए हैं। कुछ पंडालों में इको-फ्रेंडली चीजें जैसे प्राकृतिक रंग, environment-friendly lighting आदि।
  • विजुअल आर्ट, इंस्टॉलेशन, लाइट शोज़, मल्टी-मीडिया इफेक्ट्स, सोशल मैसेज भी पंडालों में दिखने लगे हैं। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण, लैंगिक समानता जैसे मुद्दों पर पंडालों द्वारा जागरूकता फैलाने की कोशिश होती है।
  • कुछ पूजा समितियाँ sustainable materials और non-toxic paints का उपयोग कर रही हैं, क्योंकि पारम्परिक पेंट्स और विसर्जन के समय होने वाला प्रदूषण एक बड़ी चिता का विषय है।

पर्यावरण और चुनौतियाँ 

  • विसर्जन (immersion) से जल स्रोतों में मृदा, रंग, गत्ता आदि का मिश्रण पर्यावरण को प्रभावित करता है। यह समस्या पेंडाल विजुअल्स के दायरे में भी आती है।
  • भारी बारिश, ट्रैफिक जाम, भीड़ प्रबंधन आदि मुश्किलें होती हैं। शिविर-पंडालों की संरचनाएं मौसम के अनुसार सुरक्षित होनी चाहिए।
  • COVID-19 जैसी महामारी ने यह दिखाया कि बड़े आयोजनों में स्वास्थ्य सुरक्षा कितनी महत्वपूर्ण है। संगठन इसे लेकर सावधानी बरतने लगे हैं।

पंडाल-हॉपिंग और त्योहार का अनुभव 

  • लोगों के लिए पंडाल-हॉपिंग सबसे रोचक हिस्सों में से एक है। शाम के समय जब लाइट लग जाती है और पंडाल पूरी तरह सज जाते हैं, पूरा शहर जगमगा उठता है।
  • परिवार और दोस्त मिलकर चलते हैं, फोटो लेते हैं, विभिन्न पंडालों की कला और थीम देखते हैं, कुछ समय संगीत, नृत्य या लोक कार्यक्रमों में बिताते हैं।
  • बच्चों और बुज़ुर्गों दोनों के लिए कुछ-न-कुछ होता है — हल्की साज-सज्जा से लेकर विशाल पंडालों का भव्य अनुभव।

संस्कृति, जुड़ाव और भावनाएं

दुर्गा पूजा सिर्फ धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि सामाजिक जुड़ाव (social bonding) का माध्यम है: लोग मीले-जुलते हैं, पुराने दोस्त मिलते हैं, परिवार एकसाथ समय बिताते हैं।

  • “माँ दुर्गा घर आ रही है” की भावना होती है, इस रूप में यह त्योहार घर, मातृ-भूमि, परंपरा और आत्मीयता से जुड़ा है।
  • लोक संगीत, भजन, धुनुची नाच (dhunuchi dance), बंदना (aarti), गीत-गजल आदि संस्कृति के वह हिस्से हैं जो भावना को बढ़ाते हैं।

प्रसिद्ध पंडालें और विशेष पूजा स्थल

कुछ पंडालें ऐसी हैं जो हर वर्ष खूब चर्चा में रहती हैं:

  • साल पुराना अहिरीटोला पंडाल : कोलकाता का ये पंडाल सबसे पुराना है. ये नॉर्थ कोलकाता के बागबाजार लॉन्च घाट के पास स्थित है. ये करीब 100 सालों से भी ज्यादा समय से दुर्गा पूजा का आयोजन करता आ रहा है. इस पंडाल को देखने के लिए बाहर से भी लोग आते हैं. यहां मां दुर्गा की भव्य मूर्ति स्थापित की जाती है, कला और नृत्य के कार्यक्रम देखने को मिलते हैं।
  • संतोष मित्रा स्क्वायर: हर साल एक अलग थीम पर आधारित होता है, जैसे कि 2023 में अयोध्या राम मंदिर थीम पर आधारित था।
  • बागबाज़ार हलधर दुर्गा पूजा : कोलकाता का सबसे पुराना और परंपरागत रूप से महत्वपूर्ण घरेलु दुर्गा पूजा मैं से एक है।

भविष्य और उम्मीदें

  • त्योहार और अधिक इको-फ्रेंडली होंगे — पेंट्स, विसर्जन सामग्री, बिजली और लाइटिंग आदि में स्वच्छ विकल्प अपनाये जायेंगे।
  • तकनीक का अधिक उपयोग होगा — डिजिटल मैप्स, ऑडियो-विज़नल गाइड्स, लाइव स्ट्रीमिंग आदि, ताकि जो लोग बाहर हों या यात्रा न कर पायें, वे भी अनुभव कर सकें।
  • युवा और कलाकारों की भागीदारी बढ़ेगी, नए थीम, नए अंदाज़ और नई कला पैंडालों में देखने को मिलेगी।
  • प्रशासन और नगर निगमों की भूमिका बढ़ेगी — crowd management, स्वच्छता, सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण आदि मामलों में।

Durga Puja in Kolkata सिर्फ पूजा-अनुष्ठान नहीं है; यह एक भावना है, एक उत्सव है जिसमें कला, संस्कृति, सामाजिक मेलजोल, भावनाएँ सब कुछ झल हैं। हर कोई — चाहे वो कोई धार्मिक हो, कलाकार हो, व्यवसायी हो या आम नागरिक हो — इस त्योहार में अपना कुछ-ना-कुछ योगदान देता है।

जब माँ दुर्गा की प्रतिमा पंडालों में विराजमान होती है, कोलकाता की हर गली-नुक्कड़ सुख-शांति, आनंद, उम्मीद और सौंदर्य से भर जाती है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, जो कला, श्रद्धा और मानवता को एक सूत्र में बाँध देता है।

आशा है कि यह आर्टिकल आपको Durga Puja in Kolkata की गहराई, विविधता और सुंदरता के बारे में एक समग्र चित्र देने में सफल रहा होगा। यदि आप चाहें, तो मैं कुछ पंडालों की विशेष फोटो-गैलरी, स्थानीय अनुभवों या यात्रा गाइड भी तैयार कर सकता हूँ। क्या चाहते हैं?

 


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